योगी सरकार के लिए कैराना और नूरपुर का उपचुनाव एक बार फिर परीक्षा बन कर सामने आया है. मिशन 2019 की तैयारियों में जुटी योगी सरकार के लिए विपक्ष एक चुनौती बन कर खड़ा है. बता दें कि 10 मई को नामांकन की अंतिम तिथि है. इससे पहले बीजेपी को अपने प्रत्याशी का चयन भी करना है. गोरखपुर और फुलपुर उपचुनाव में सरकार और संगठन दूर- दूर नजर आ रहे थे. ऐसे में बीजेपी के लिए उपचुनाव कितना चुनौतियों से भरा होगा.
वैसे तो उपचुनाव सरकार का माना जाता है. लेकिन गोरखपुर और फुलूपुर के उपचुनाव के बाद जहां विपक्ष के हौसले बुलंद हैं, वहीं योगी सरकार अपने कामकाज को जमीन पर उतारकर संदेश देने में जुटी है. लगातार गांवों में चौपाल का आयोजन हो रहा है, जिसमें संगठन से लेकर सरकार तक सभी जुटे हैं. ये तैयारी वैसे तो 2019 के लोकसभा चुनाव की है. पर कैराना का उपचुनाव भी कम नहीं है.
कैराना बीजेपी के ताकतवर गुर्जर नेता कैराना हुकूमसिंह का क्षेत्र था. ये वही हुकूम सिंह थे, जिन्होंने हिंदुओं के पलायान का मुद्दा गरमाया था. राजनीति भी इस पर खुब हुई थी. अब हुकूम सिंह इस दुनिया में नहीं है और बीजेपी के लिए इस सीट को जीतना कोई चुनौती से कम नहीं है. इसके साथ ही नूरपुर विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव हो रहा है, जो कि बीजेपी की सीट है.
बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने बताया कि हमारे लिए ये उपचुनाव काफी महत्वपूर्ण है. हमें उम्मीद हैं कि इस बार दोनों लोकसभा सीटों पर कमल ही खिलेगा. हमेशा की तरह इस बार भी विपक्ष चारों कोने चित होगा.बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व का फोकस भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मई के तीसरे सप्ताह में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का दौरा कर सकते हैं.
इससे पहले के दोनों उपचुनाव गोरखपुर और फूलपुर में केंद्रीय नेतृत्व ने सारी जिम्मेदारी प्रदेश के नेताओं को दी थी, जिसमें सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव मौर्य का संसदीय क्षेत्र होने के चलते विशेष रोल था. क्या इस उपचुनाव में केंद्रीय नेतृत्व रुचि दिखाएगा. क्या संगठन और सरकार के बीच की तारतम्यता दिखेगी. ये तो 28 की वोटिंग और 31 मई को मतगणना के बाद ही पता चलेगा.
Post A Comment:
0 comments so far,add yours